रायपुर। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अध्यक्षता में गुरुवार, 24 नवंबर 2022 को हुई कैबिनेट की बैठक में आरक्षण के लिए नया कोटा तय किया गया है। सरकार आदिवासी वर्ग-एसटी को उनकी आबादी के अनुपात में 32%, अनुसूचित जाति-एससी को 13% और सबसे बड़े जाति समूह अन्य पिछड़ा वर्ग-ओबीसी को 27% आरक्षण देगी। वहीं सामान्य वर्ग के गरीबों को 4 फीसदी आरक्षण दिया जाएगा। इसके लिए कैबिनेट ने दो विधेयकों में बदलाव के मसौदे को मंजूरी दे दी है।
कैबिनेट के फैसलों की जानकारी देते हुए कृषि, पंचायत एवं संसदीय कार्य मंत्री रविंद्र चौबे ने कहा, उच्च न्यायालय के फैसले के बाद आरक्षण मामले में जो स्थिति पैदा हुई है, उसे लेकर राज्य सरकार काफी गंभीर है। आरक्षण अधिनियम के जिन प्रावधानों को उच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया है, उन्हें कानून के माध्यम से पुन: प्रभावी बनाया जाए। इसके लिए लोक सेवाओं में आरक्षण संशोधन विधेयक-2022 और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश-2022 के प्रारूप को मंजूरी दे दी गई है। ये 1-2 दिसंबर को प्रस्तावित विधानसभा के विशेष सत्र में विधेयक पेश किए जाएंगे।
मंत्री रवींद्र चौबे ने कहा, सरकार बार-बार कह रही है कि सरकार जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण देने के लिए प्रतिबद्ध है। सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि सामान्य वर्ग के गरीबों को 10 फीसदी तक आरक्षण देना उचित है, तो उसका पालन भी किया जाएगा। मंत्री ने कानूनी बाध्यताओं के चलते विधानसभा में विधेयक पेश होने से पहले आरक्षण अनुपात का खुलासा नहीं किया। लेकिन सरकार के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि एसटी के लिए 32%, एससी के लिए 13%, ओबीसी के लिए 27% और सामान्य गरीब-ईडब्ल्यूएस के लिए 4% तय किया गया है।
बताया जा रहा है कि सरकार इस बिल के साथ एक प्रस्ताव पारित करने पर विचार कर रही है। इसमें केंद्र सरकार से छत्तीसगढ़ के आरक्षण कानून को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने का आग्रह किया जाएगा। तमिलनाडु ने ऐसा प्रस्ताव भेजा था। कर्नाटक भी यही कर रहा है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, अधिनियम को नौवीं अनुसूची में शामिल करने का प्रभाव यह है कि इसे किसी भी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती है।
अनुसूचित जाति विवाद बढ़ेगा
2012 तक राज्य में अनुसूचित जाति को 16% आरक्षण मिल रहा था। 2012 में बदलाव के बाद इसे घटाकर 12% कर दिया गया। गुरु घासीदास साहित्य एवं संस्कृति अकादमी इसका विरोध करने के लिए हाईकोर्ट गई थी, लेकिन उसने आदिवासी समुदाय को दिए गए 32 फीसदी आरक्षण को असंवैधानिक साबित करने पर पूरा जोर लगा दिया।
अब हाईकोर्ट के आदेश से पूरा आरक्षण रोस्टर खत्म कर दिया गया है। ऐसे में अगर सरकार जनसंख्या के अनुपात में 13 फीसदी आरक्षण करती है तो अनुसूचित जाति की नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है। यदि यह 16% है तो जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण देने की सरकार की दलील खारिज हो जाएगी।
बार-बार क्या हुआ
छत्तीसगढ़ में सरकार ने 2012 के आरक्षण के अनुपात में बदलाव किया था। इसमें अनुसूचित जनजाति का आरक्षण 20 से बढ़ाकर 32% किया गया। वहीं, अनुसूचित जाति का आरक्षण 16% से घटाकर 12% कर दिया गया। इसे गुरु घासीदास साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। बाद में कई और याचिकाएं दायर की गईं।
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 19 सितंबर 2022 को इस पर फैसला सुनाते हुए राज्य के आरक्षण अधिनियम की उस धारा को रद्द कर दिया था, जिसमें आरक्षण के अनुपात का जिक्र किया गया है। इससे आरक्षण की व्यवस्था संकट में आ गई। भर्ती परीक्षाओं का परिणाम रोक दिया गया है। परीक्षाएं स्थगित कर दी गईं।
काउंसिलिंग के लिए सरकार ने अस्थायी रोस्टर जारी कर 2012 से पहले की पुरानी व्यवस्था बहाल करने का प्रयास किया। इस बीच आदिवासी समाज के पांच लोग सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। राज्य सरकार ने भी इस फैसले के खिलाफ अपील की है। तमिलनाडु और कर्नाटक की आरक्षण प्रणाली का अध्ययन करने के लिए एक अध्ययन दल भी भेजा गया है। 10 नवंबर को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने की अधिसूचना जारी कर दी गई है।